Wednesday, October 29, 2014

Why are we celebrating World Polio Day on the wrong date?

The hindu
29 October 2014
new delhi

“Why do we continue to observe World Polio Day on the wrong date?” This simple question led Indian disability rights activist and polio survivor Dr. Satendra Singh to initiate a long struggle to set the date right.

“The United Nation’s website and Centre for Disease Control and Prevention’s website both tags that World Polio Day is observed globally on October 24 commemorating the birth of Dr. Jonas Salk, who was the leader of the team that invented a vaccine against polio,’’ explained Dr. Singh, who is an Assistant Professor of Physiology at University College of Medical Sciences and works at GTB Hospital, Delhi.

“The controversy is that the U.S. virologist was born on October 28, 1914, and not on October 24 as claimed by Rotary and others. We wonder why this erroneous belief has perpetuated since ages and why nobody challenged it?’’ he asked.

Stating that he has pointed the ‘error’ to the ‘World Polio Day’ website, Dr. Singh said: “They agreed it’s wrong.’’

“I then wrote a letter to the editor of the Vaccine journal, an internationally renowned medical journal. In fact, this very journal years back had carried an article on Jonas Salk clearly stating October 28 as his birth date. The journal also immediately accepted my letter on the mix-up of dates and published it,’’ added Dr. Singh.

He added that despite reminders and follow-ups there has been no major effort to rectify the situation. “For years, we have been perpetuating this error by misquoting a legend’s birth. If Rotary International has faltered here by choosing the wrong day, isn’t it our duty to correct the same? October 24 is not yet a United Nation’s observance, but even if it has become synonymous with Polio Day can’t we celebrate the whole week as a polio week to satisfy all parties,’’ noted Dr. Singh.

Dr. Singh added that he had brought the issue to the notice of World Health Organisation.



“This year, they have refrained from mentioning the date,’’ he noted.


Google doodles Salk's 100th birthday on 28th October 2014
https://www.google.com/doodles/jonas-salks-100th-birthday

Friday, October 24, 2014

पोलियोत्तर संलक्षण (पोस्ट पोलियो सिंड्रोम / Post-Polio Syndrome)

साल्क (1955) और सेबिन (1962) टीकों के इस्तेमाल की स्वीकृति मिलने के बाद से दुनिया के लगभग सभी देशों से पोलियोमाइलिटिस (शिशु अंगघात) का उन्मूलन हो चुका है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन, डब्ल्यूटीओ) का अनुमान है कि दुनिया भर में 1.2 करोड़ लोग किसी न किसी हद तक विकलांगता पोलियो माइलिटिस जन्य विकलांगता से ग्रस्त हैं। नेशनल सेंटर फ़ार हेल्थ स्टेटिस्टिक्स का अनुमान है कि संयुक्त राज्य अमरीका में 10 लाख लोग पोलियो से ग्रस्त रहे हैं। उनमें से 4,33,000 लोगों ने पक्षाघात की शिकायत है जिसकी वजह से किसी न किसी तरह की विकलांगता के शिकार हुए हैं।
पोलियो की मार से बचे इन लोगों में से अधिकतर लोगों ने बरसों सक्रिय जीवन जीया है, पोलियो की उनकी यादें कब की भूल चुकी हैं और उनके स्वास्थ्य स्थिर हैं। 1970 के दशक के अंतिम बरसों के आते-आते पोलियो से बचे लोग थकान, दर्द, सांस लेने या निकलने में तकलीफ और अतिरिक्त थकान जैसी नयी समस्याएं महसूस करने लगे। चिकित्सा व्यवसायिकों ने इसे पोलियोत्तर संलक्षण (पोस्ट पोलियो सिंड्रोम, पीपीएस) नाम दिया। पोलियोत्तर संलक्षण से जुड़ी थकान महसूस करते हैं कुछ लोग जो फ्लू में महसूस होने वाली निढाल कर देने वाली थकान होती है और समय बीतने के साथ और बढ़ती जाती है। इस तरह की थकान शारीरिक गतिविधयों के दौरान और बढ़ जाती है और मानसिक एकाग्रता और याददाश्त की भी समस्या पैदा कर सकती है। कुछ लोग पेशीय थकान अनुभव करते हैं जो एक तरह की पेशीय दुर्बलता होती है और व्यायाम करने पर बढ़ती और आराम कर लेने पर कम हो जाती है।
हालिया अनुसंधान संकेत करते हैं कि व्यक्ति जितनी लंबी अवधि तक पोलियो के अवशिष्टों के साथ जीता है, वह अवधि उसकी कालक्रमिक आयु जितनी ही जोखिम कारक होती है। यह भी प्रतीत होता है कि जो लोग सबसे गंभीर किस्म के अंगघात का अनुभव करते हैं और जिनके क्रिया-कलापों में सबसे ज्यादा सुधार आया होता है वे अब उन लोगों के मुकाबले ज्यादा परेशानी अनुभव करते हैं मूलत: जिनके अंगघात कम गंभीर रहे होते हैं।
पोलियोत्तर लक्षणों पर मौजूदा आम राय तंत्रिका कोशिकाओं और उनसे जुड़े पेशीय तंतुओं पर ध्यान केंद्रित करती है। जब पोलियो के विषाणु मोटर न्यूरान्स को क्षत्रिग्रस्त कर देते हैं या नष्ट कर देते हैं पेशीय तंतु अनाथ हो जाते हैं और उन्हें लकवा मार जाता है। पोलियो के हमले से बच जाने पर ऐसे लोग फिर से इसलिए चलने-फिरने लगते हैं कि तंत्रिका कोशिकाएं किसी हद ठीक हो जाती हैं। उसके बाद हालत में जो सुधार आते हैं आस-पास की अप्रभावित तंत्रिका कोशिकाओं की ‘पल्लवित’ होने और अनाथ कोशिकाओं के साथ फिर से जुड़ने की क्षमता का नतीजा होते हैं।
इस पुनर्गिठत तंत्रिका पेशीय प्रणाली के साथ बरसों से जीवित उत्तरजीवी अब दुष्परिणाम अनुभव कर रहे हैं—थकी हुई तंत्रिका कोशिकाएं और थकी हुई पेशियां और जोड़ ऊपर से बढ़ती उम्र के प्रभाव। हालांकि इनके विषाणु जन्य कारणों की खोज जारी है लेकिन इस अवधारणा की पुष्टि करने वाले निर्णायक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं कि पोलियोत्तर संलक्षण पोलियो विषाणु के पुनर्संक्रमण का नतीजा हैं।
पोलियो के उत्तरजीवी नियमित समयांतराल पर चिकित्सकीय मदद लेकर, खान-पान में सावधानी बरत कर, ज्यादा वजन वृद्धि टाल कर और धूम्रपान और अत्यधिक शराब के सेवन से परहेज करके अपनी सेहत की देख-भाल करते हैं।
उत्तरजीवियों को अपने शरीर की आवाज सुननी चाहिए। ऐसी गतिविधियों से बचना चाहिए जिनसे दर्द होता है-यह खतरे का संकेत है। बेरोक-टोक दर्द निवारक दवाइयों, विशेष कर स्वापकों के सेवन से बचें। पेशियों का जरूरत से ज्यादा उपयोग न करें लेकिन नियमित रूप से ऐसे काम-काज करते रहें जिनसे रोग के लक्षण और खराब न हों, विशेषत: व्यायाम न करें या दर्द होने पर व्यायाम जारी न रखें। ऐसे कामों से परहेज करें जिनसे दस मिनट से ज्यादा समय तक बनी रहने वाली थकान आती हो। अनावश्यक कामों से परहेज करके ऊर्जा बचायें।
पोलियोत्तर संलक्षण जानलेवा नहीं होते लेकिन ये गौण किस्म की तकलीफ और विकलांगता पैदा कर सकते हैं। बहुतायत से होने वाली पोलियोत्तर संलक्षण जन्य अक्षमता है चलने-फिरने की क्षमता का ह्रास। पोलियोत्तर संलक्षण से पीड़ित व्यक्तियों को खाना पकाने, धुलाई करने, खरीददारी और ड्राइविंग करने-जैसी दैन्य-दिन गतिविधियों के निष्पादन में भी कठिनाई हो सकती है। छड़ी, बैसाखी, वाकर, ह्वील चेयर या बिजली से चलने वाले स्कूटर कुछ लोगों के लिए अनिवार्य हो सकते हैं। तकलीफ ज्यादा होने पर इन व्यक्तियों को अपना पेशा बदलना पड़ सकता है या सिरे से काम करना बंद करना पड़ सकता है।
बहुत से लोगों को अपनी नयी विकलांगता के साथ तालमेल बनाने में कठिनाई होती है। पोलियोत्तर संलक्षण से पीड़ित कुछ लोगों के लिए फिर से बचपन की पोलियो की अनुभूति के साथ जीना आघातकारी, यहां तक कि संत्रासक हो सकता है। सौभाग्य से चिकित्सकीय समुदाय का ध्यान बड़ी तेजी से पीपीएस की ओर आकर्षित हो रहा है और ऐसे स्वास्थ्य रक्षा व्यवसायिकों की तादाद बढ़ रही है जो पीपीएस को बेहतर ढंग से समझते हैं और उचित चिकित्सकीय और मनोवैज्ञानिक सहायता कर सकते हैं; इसके अलावा पीपीएस सहायक समूह, परचे और शैक्षणिक तंत्र भी हैं जो पीपीएस के बारे में अद्यतन जानकारियां देने के साथ-साथ लोगों को इस बात की भी जानकारी देते हैं कि अपने संघर्ष में वे अकेले नहीं हैं।
स्रोत: पोस्ट पोलियो हेल्थ इंटरनेशनल, मांट्रियल न्यूरोलॉजिकल हॉस्पिटल पोस्ट-पोलियो क्लिनिक।

Tuesday, October 14, 2014

UPSC asked to withdraw proforma which demands photographs showing disability



CNN IBN
Published on Oct 14, 2014
In an interim reprieve for the differently abled Union Public Service Commission (UPSC) aspirants, the Court of Chief Commissioner for Persons with Disability has directed the commission to withdraw its proforma in which applicants had to provide photographs showing their disability as a proof.

The order has been issued after Satendra Singh, who claimed that he was earlier rejected by UPSC because of his disability, complained against the new directive. "Despite valid certificates, why was UPSC asking for photographs," he had questioned.

Source: CNN IBN 

Monday, October 13, 2014

Finally UPSC asked to withdraw its 'discriminatory proforma' for disabled applicants

UPSC directed to withdraw its ‘discriminatory proforma’

The hindu, october 8 

The format asks applicants to paste ‘photo showing disability’

The Court of Chief Commissioner for Persons with Disability has directed the Union Public Service Commission (UPSC) to withdraw its “discriminatory performa”. It has directed the UPSC to refrain from asking differently-abled people to submit photographs showing their disabilities and to consider the ‘permanent disability certificate’ issued from a government hospital as a valid proof.

The action comes following an intervention by Satendra Singh, who has been working in the area of disability rights and had written to the UPSC against “its discriminatory policies”.

“Despite having a valid disability certificate, the UPSC asks all applicants to use their own format for disability certificate. This is against the existing guidelines but nobody challenged the UPSC. Moreover, the format asks applicants to paste ‘photo showing disability’, which is not only discriminatory but also infringement of right to privacy. An example – how can an amputee female attach her photograph?’’ asked Dr. Singh.

He added that in a follow-up to his complaint, he also quoted the Amended Persons with Disabilities Rules 2009, which were circulated to all the Ministries/Departments.

“The amended rules show the format to be used for disability certificate and none of them asks ‘to showcase disability’,” said the physician.

He further pointed out that Rule 6 of the same order clearly states that a certificate issued under Rule 4 is to be generally valid for all purpose. “When a person already has a valid government certificate of permanent disability why does he have to get his disability certificate again in the prescribed form of the UPSC?’’ questioned Dr. Singh.

The Court of CCPD accepting the plea presented by Dr. Singh has now passed a direction to the UPSC to accept disability certificate issued by government hospitals in the existing format.

In its letter to UPSC, the Court has noted: “The Chief Commissioner of Persons with Disabilities has directed to accept the disability certificate of the persons with disabilities in the existing format. Your comments in the matter are to reach Court within 20 days of the recipient of the communication (dated September 22).”

Wednesday, October 8, 2014

नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो को न्यायालय मुख्य आयुक्त निशक्तजन की फटकार. जांच के नाम पर दुर्व्यवहार


हिंदुस्तान ८ अक्टूबर २०१४ पृष्ठ ४ 

नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (BCAS) एवं नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) दोनों को न्यायालय मुख्य आयुक्त निशक्तजन ने ३० दिन का नोटिस दिया है की वह सुनिश्चित करें की विकलांग यात्रियों को सुरक्षा जांच के बहाने प्रताड़ित न किया जाये .  न्यायालय ने यह आदेश GTB हॉस्पिटल के डॉक्टर सतेंद्र सिंह की शिकायत पर किया. डॉ सिंह को इस साल फ़रवरी  में हैदराबाद एयरपोर्ट पर सिक्योरिटी गार्ड ने अपने विकलांग पाँव के कैलिपर को उतारने के लिए जोर डाला था. डॉ सिंह ने सुरक्षा प्रकिर्या में पूरा साथ दिया और कैलिपर के लिए एक्सप्लोसिव ट्रेस डिवाइस (ETD ) की गुज़ारिश की जो बिना दिक्कत के कृतिम  अंग और कैलिपर स्कैन कर सकता है . सिक्योरिटी इन्चर्ज सिर्फ डॉ सिंह का कैलिपर उतरवा कर मशीन में डालने पर अडिग था और इस गहमागहमी में डॉ सिंह को काफी कुछ सुन्ना भी पड़ा. उन्होंने यह भी बताये की वह एक सरकारी एम्प्लोयी हैं और एक मेडिकल डॉक्टर भी हैं पर वे नहीं माने. अपने अधिकारों के बारे में सजग होने के कारन उन्होंने उतरने से साफ़ मन कर दिया और सीनियर अफसर को बुलवाया जिन्होंने स्तिथि संभाली और   ETD  से स्कैन करा.

यह घटना पहले भी मश्हूर कलाकार सुधा चंद्रन के साथ हो चुकी है जो जयपुर फुट पहनती हैं . ऐसी हीनता विदेशो में नहीं हैं जहां एक विकलांग व्यक्ति व्हीलचेयर में बैठा बैठे ही स्कैन कर लिया जाता है और उसे उपहास का पात्र नहीं बनना पड़ता न ही अपने कपडे उतरने पड़ते हैं. इसी साल मार्च में BCAS ने नयी SoP जारी की जिसमे फिर सुरक्षा जांच में विकलांग यात्रियों के लिए साफ़ निर्देश नहीं थे. अप्रैल में एक मीटिंग में डॉ सिंह व अन्य पीड़ित लोगो ने जॉइंट कमिश्नर BB Dash को अमेरिका की जांच एजेंसियों के दिशा निर्देश दिखाई जो साफ़ कहती है की विकलांग यात्रियों को अपने कृतिम पाँव निकलने की जरूरत नहीं है